देश के आधे से अधिक जनता खेती करते हैं और हर चैथा मतदाता किसान हैं। आज देष में 12 करोड़ परिवार खेती पर निर्भर हैं। यह संख्या देष के कुल परिवारों का 48 फीसदी हैं। देश में कुल मतदान में 65 प्रतिशत हिस्सेदारी किसानों की होती हैं, जो किसी भी सत्ता को उखाड़ फेंकने का वजूद रखती हैं, इसलिए सभी राजनीतिक दल अपने भाषण के प्रारंभ और अंत में जय-जवान, जय-किसान का नारा लगाना नहीं भूलते।
कवर्धा:- किसान कांग्रेस के जिलाध्यक्ष विजय वैष्णव ने जारी विज्ञप्ति मे कहा की सन् 1960 से देश में रासायनिक उर्वरक का चलन प्रारंभ हुआ हैं तब से केन्द्र में जितनी भी सरकारे बनी सभी ने उर्वरक में सब्सिडी जनता के द्वारा भरे जाने वाले टैक्स की रकम से जारी रखा और निर्माता कंपनियों को कुल कीमत में से देय सब्सिडी की रकम को घटाकर उर्वरक की एमआरपी घोषित करने की नीति चली आ रही हैं। अब तक किसी भी चुनी हुई सरकार ने इसे अपनी उपलब्धि बताकर राजनीतिक लाभ के लिए ढ़िढ़ोरा नहीं पिटा किंतु दुर्भाग्य की बात हैं उर्वरक सब्सिडी का नाम बदलकर प्रधानमंत्री भारतीय जन उर्वरक परियोजना नाम कर, जिसका शार्ट नेम पी.एम.बी.जे.पी. रखा गया हैं। 24 अगस्त 2022 को भारत सरकार के उर्वरक विभाग द्वारा इस संबंध में परिपत्र जारी किया गया हैं। पूरे परिवर्तन का उद्देश्य राजनीतिक लाभ की चेष्टा से किया जा रहा हैं अन्यथा केन्द्र सरकार की कृषि क्षेत्र के सभी सब्सिडी योजनाओं का नाम जैसे- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री सूखा राहत योजना, पुनसंरचित मौसम आधारित फसल बीमा योजना, नारियल पाम बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि योजना, एकीकृत पैकेज बीमा योजना के नाम से चलित हैं ,किंतु उर्वरक सब्सिडी योजना के नाम परिवर्तन केन्द्र सरकार द्वारा पी.एम.बी.जे.पी. बहुत ही विवशता में किया क्योकि केन्द्र सरकार द्वारा मुख्य रूप से चलाई जा रही कृषक कल्याणकारी योजनाएं धरातल में असफल हैं, जैसेः- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बीमा कंपनियों के लाभ की गारंटी में तब्दीलः-* वास्तव में फसल बीमा में अनावरी की गणना के मानक में परिवर्तन की आवश्यकता हैं। वर्तमान में इसमें किसानों से छल हो रहा हैं। जब सरकार खुद ही 2015 तक 20 क्विंटल प्रति एकड़ धान समर्थन मूल्य पर खरीदा करती थी जिसे घटाकर 15 क्विंटल किया गया हैं, यदि 15 क्विंटल को ही उपज का मानक सरकार मानती हैं तो प्रति हेक्टेयर कम से कम 37 क्विंटल धान की पैदावार होती हैं, इसके बावजूद भी फसल बीमा में इसका मानक 22 क्विंटल रखा गया हैं, जो बीमा कंपनियों और कमीशन में अधिकारियों की कमाई का घोतक हैं, और बीमा कंपनियां प्रति वर्ष अरबों रूपये के फायदे में रहती हैं। जनता के द्वारा दिये गये टैक्स एवं किसान का रकम भ्रष्ट अधिकारियों एवं बीमा कंपनियों की जेब में चला जाता हैं।
● केन्द्र सरकार की सूखा राहत की अनावरी गणना दूरभिसंधि से प्रेरित हैंः- फसल बीमा की तरह सिंचित में 22 क्विंटल और असिंचित में 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मानक रखने के स्थान पर सूखा राहत के लिए सिंचित में 44 और असिंचित में 37 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मानक पैदावार तय किया हैं, इस मानक से एक तिहाई फसल खराब हेाने पर भुगतान का प्रावधान हैं, जबकि सूखे की स्थिति में 37 क्विंटल प्रति हेक्टेयर यानि 12 क्विंटल प्रति एकड़ और सिंचित में 44 क्विंटल प्रति हेक्टेयर यानि 14 क्विंटल प्रति एकड़ मानक का एक तिहाई नुकसान यानि असिंचित में 8 एवं सिंचित में 9 क्विंटल पैदावार पर ही सूखा राहत की पात्रता हैं, जबकि आज की स्थिति में असिंचित में 20 क्विंटल प्रति एकड़ और सिंचित में प्रति एकड़ 25 क्विंटल धान की पैदावार होती हैं। सूखा राहत की अनावरी गणना इसी वास्तविक मानक को लेकर होना चाहिये, जो न होना एक दुर्भाग्य हैं। श्री वैष्णव ने तथ्यात्मक आंकड़े के साथ कहा की —
● किसान क्रेडिट कार्ड बनाम ऋण वसूली गारंटीः- सहकारी समितियों द्वारा किसान विकास पत्र के माध्यम से खेती के लिए ऋण उपलब्ध कराई जाती हैं, इसमें दी जाने वाली ऋण की सीमा फसल बीमा की तर्ज पर सिंचित में 22 क्विंटल, असिंचित में 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आधार पर तय किया जाता हैं, जबकि ऋण की स्थिति में फसल खराब होती हैं और बीमा भुगतान की नौबत आती हैं तो केवल सहकारी समितियों व बैंकों का कर्ज की राशि वसूल हो पाता हैं। इस तरह सहकारी समिति और बैंक अपनी सुरक्षा कर लेती हैं, जबकि केसीसी में ऋण कम मिलने के कारण किसानों को खेती के लिए अपनी जेब से भी खर्च करना पड़ता हैं। बीमा भुगतान की पूरी राशि समितियों और बैंक में चला जाता हैं। किसानों को अपना घर चलाने के लिए एक रूपया भी नहीं मिलता फिर भी सहकारी बैंकों में उपज के मानक को/नगद रकम की साख को बढ़ाने की आवश्यकता नहीं समझना समझ से परे हैं।
● केन्द्र में बैठी भाजपा की सत्ता स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के वायदे पर 2014 में सत्ता में आई वादा आज भी अधूरा:- एम.एस.स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन ऑन फाॅर्मस का गठन किया गया जिसकी आखिरी प्रमुख सिफारिश फसल उत्पादन की कीमत से 50 प्रतिशत ज्यादा दाम किसानों को मिले इसे यदि लागू किया गया होता तो 2014 में ही धान का समर्थन मूल्य 2400 रू. होता, जिससे किसानों का ध्यान भटकाने के लिए 2022 तक किसानों की आय दूगुना करने के शिगुफे में उड़ा दिया गया हैं।
● एम.एस.पी. की कानूनी गारंटी की माॅंगः- एक साल से ज्यादा समय तक चले किसान आंदोलन में 715 कृषकों के शहीद होने के पश्चात तीनों कृषि विधेयकों को निरस्त कर एम.एस.पी.गारंटी अधिनियम की माॅंग पर केन्द्र की मोदी सरकार समिति गठन कर रिपोर्ट के आने के अनुसार कार्यवाही का आश्वासन दिया गया था किंतु एक वर्ष समय बीत जाने के पश्चात भी अभी इसमें कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाये गये हैं, जिससे आगामी लोकसभा के पूर्व कृषको में पुनः असंतोष पनपना लाजमी हैं।
● केन्द्र सरकार कृषि क्षेत्र को घाटे का सौदा मानती हैंः-केन्द्र सरकार के जितने भी चहेते अर्थशास्त्रीय, सलाहकार हैं वे कृषि के क्षेत्र में पैसा लगाने को घाटे का सौदा मानती हैं। मोदी सरकार का मानना हैं देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषको की हिस्सेदारी 14 फीसदी हैं बाकि 86 फीसदी अन्य क्षेत्र से हैं, जबकि कुल सकल घरेलू उत्पाद के 60 फीसदी हिस्सा को प्राप्त करने के लिए कृषि क्षेत्र से जुड़े उपभोक्ता एवं कृषि आधारित उद्योग सेक्टर के कारण प्राप्त होता हैं, यदि कृषि चैपट होगा तो इस 60 फीसदी हिस्सेदारी को प्राप्त करना असंभव साबित होगा एवं 1950 के दशक में हमारी अर्थव्यवस्था में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 53 फीसदी तक रहा हैं। देश में निर्यात के क्षेत्र में कृषि की हिस्सेदारी 10 फीसदी हैं। सरकार की गलत नीतियों के कारण हमारी अर्थव्यवस्था कृषि का योगदान घटते जा रहा हैं, जबकि मोदी सरकार के चलते व्यापार जगत से जुड़े उद्योगपतियों का 1 अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2021 तक बैंकों के 11 लाख 19482 करोड़ रू. राईट आफ/माफ किये गये हैं, जबकि कृषको का केन्द्र सरकार ने एक रूपया भी माफ नहीं किया। किसान कांग्रेस के जिलाध्यक्ष वैष्णव ने आगे कहा –
उपरोक्त समस्त कारणों, समस्याओं का सकारात्मक हल नहीं निकाला जा रहा हैं एवं भाजपा के अतीत के पन्नों पर कृषि क्षेत्र में गर्व करने के लिये उपलब्धियों का काॅलम निंरक हैं, जिसकी भरपाई के लिए शार्टकट में केन्द्र सरकार 60 वर्ष पुरानी अप्रत्यक्ष/इनडायरेक्ट उर्वरक सब्सिडी जिसकी जानकारी आज के समय में 75 फीसदी कृषको को नहीं हैं, जिसका फायदा उठाने में जुट गई है।
