*सरईकापा मुक्तिधाम को गंदगी से दिलाएं मुक्ति*

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गंदगी से होकर गुजरती हैं मुक्ति की राह*

 

शहडोल (सरईकापा )=स्वच्छता अभियान का असर ग्राम पंचायत सरईकापा में ही नजर नहीं आ रहा है। ग्राम पंचायत के मुक्तिधाम में चारों तरफ फैली गंदगी और अव्यवस्थाओं को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। मुक्तिधाम के अंदर खुले में सैकड़ों लोग प्रतिदिन गंदगी कर रहे हैं, जिससे पैर रखने तक को जगह नहीं है। ग्राम पंचायत में सामुदायिक स्वच्छता परिसर तो है लेकिन हमेशा ताला लगा रहता है। वहीं वार्ड के कुछ लोग ही अपने घर में बने शौचालय का उपयोग कर रहे हैं। बस स्टैंड के करीब सार्वजनिक स्वच्छता परिसर का ताला खुलवाने की मांग लंबे समय से कर रहे हैं, लेकिन इस ओर कोई पहल नहीं हो रही है।

 

 

*गंदगी के बीच करते अंतिम संस्कारः*

 

 

ग्राम पंचायत में बड़ी संख्या में लोग निवासरत हैं। सभी लोग अपने परिजनों के निधन के बाद अंतिम संस्कार के लिए बस स्टैंड के पास स्थित मुक्तिधाम पहुंचते हैं। लोगों को मजबूरी में गंदगी के बीच अंतिम संस्कार के साथ खारी एकत्रित करना पड़ता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जिस जगह पर दाह संस्कार किया जाता है, वहां अव्यवस्थाएं हावी हैं। मुक्तिधाम मे न ही पीने के पानी की कोई व्यवस्था। स्नान घाट के अभाव में असुविधा के बीच ही दाह संस्कार करना लोगों की मजबूरी बन गई है। लोगों ने बताया कि दाह संस्कार के स्थान पर बड़ी-बड़ी घास उग आई है, जिसमे जहरीले जीव के छिपे रहने का खतरा बना रहता है। बरसात के दिनों में पूरा मुक्तिधाम कीचड़ के कारण दलदल सा हो जाता है और मृत शरीर को ले जाने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।इतने महत्वपूर्ण स्थल की साफ-सफाई एवं व्यवस्था पर ग्राम पंचायत का कोई ध्यान नहीं है। यहां न तो कभी साफ-सफाई होती है और ना सुविधाओं के विकास पर ग्राम पंचायत का कोई ध्यान नहीं है। जबकि ऐसे जगहों की नियमित साफ-सफाई का प्रबंध होना चाहिए। प्रतिवर्ष ग्राम पंचायत से लाखो की विकास योजनाएं ली जाती है, लेकिन यहां शेड निर्माण, पानी, लोगों के बैठने की व्यवस्था व परिसर की चारदीवारी के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। स्थानीय लोगों में यहां के प्रति ग्राम पंचायत के उदासीन रवैये से काफी रोष है।

 

 

 

*महिला सरपंच बनीं लेकिन देवर राजेश रिश्तेदार चला रहे मनमानी ढंग से पंचायत,*

 

 

जिले में कई पंचायतों में महिलाएं सरपंच बनीं लेकिन असल में अधिकांश जगह पंचायतें उनके पति, ससुर या अन्य रिश्तेदार चला रहे हैं। बैखौफ होकर वे पंचायत कार्यालय में उनकी कुर्सी पर बैठते हैं और हस्ताक्षर भी कर देते हैं। जबकि पंचायतीराज विभाग इसे आपराधिक कृत्य मानता है। ऐसा होने पर आईपीसी में मुकदमा भी दर्ज हो सकता है लेकिन जिले में अभी तक किसी भी मामले में कार्रवाई नहीं हुई है। इन मामलों में कार्रवाई के अधिकार ग्राम पंचायत में सचिव, पंचायत समिति में बीडीओ और जिला परिषद में सीईओ के पास होता है। अधिकांश का कहना है कि उनके पास कोई शिकायत नहीं आई जबकि जिले में रोज ऐसा हो रहा है। पता चला कि कई पंचायतों में महिला जनप्रतिनिधि के रिश्तेदार ही सर्वेसर्वा बने हुए हैं।

Sharma
Author: Sharma

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