‘साहित्य, समाज और संस्कृति’ विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का जनजातीय विश्वविद्यालय में सफल आयोजन

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साहित्य, समाज और संस्कृति’ विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का जनजातीय विश्वविद्यालय में सफल आयोजन

अनूपपुर/इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय,अमरकंटक एवं उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ, उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में यह संगोष्ठी हिंदी विभाग एवं राजभाषा अनुभाग के समेकित प्रयास से सम्प्पन हुई। जिसमें चार तकनीकी सत्र हुए। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश भर के मूर्धन्य साहित्यकार, अध्येताओं, चिंतकों और शोधार्थियों ने सहभागिता एवं प्रतिभागिता की।

 संगोष्ठी की औपचारिक शुरुआत उद्घाटन सत्र के रूप में हुई। उद्घाटन  सत्र में इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने अध्यक्षता की, अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में साहित्य के व्यापक परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए वेद से लेकर विज्ञान तक विस्तृत साहित्य के अनेक रूपों, साहित्य की केंद्रीय स्थापनाओं और समाज एवं संस्कृति के मूल्यों के सन्दर्भ में सनातन धर्म, संस्कृति और समाज पर रामायण और रामचरित के माध्यम से बहुत ही सारगर्भित बात कहीं। इसी सत्र में साहित्य अकादमी भोपाल, मध्य प्रदेश के निदेशक डॉ. विकास दवे बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे और उन्होंने साहित्य, समाज और संस्कृति के अंतर्संबंधों पर महत्वपूर्ण चिंतन करते हुए भारतीय संस्कृति की विश्वव्यापकता पर विस्तार से सोदाहरण प्रकाश डाला उद्घाटन सत्र में डॉ.अमिता दुबे,प्रधान सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ बतौर विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहीं। विशिष्ट अथिति के रूप में उपस्थित डॉ.अमिता दुबे ने अपने विशिष्ट वक्तव्य में साहित्य के व्यापक परिदृश्य पर बात करते हुए साहित्यिक अध्येताओं को समकालीन विमर्शों के मकड़जाल से बचने की बाते कहीं, उनका ऐसा मानना है कि विमर्श साहित्य की मूल आत्मा को खंडित करते हैं सम्पूर्ण मुक्ति के मार्ग में बाधक होते हैं, जबकि साहित्य का उद्देश्य मानव मुक्ति और लोक कल्याण की भावना है। डॉ. विकास दवे ने साहित्य को समाज का दर्पण बताते हुए कहा था कि-दर्पण के सामने हमें कपडे पहनकर खड़ा होना है या नंगे खड़ा होना है यह संस्कृति बताती है। इसी बात को और विस्तार देते हुए डॉ.अमिता दुबे ने ‘साहित्य समाज का दर्पण है’ जैसी बहु प्रचलित उक्ति के माध्यम से साहित्य, समाज और संस्कृति के अंतर्संबंधों पर गहराई से प्रकाश डाला।

हिंदी विभाग, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, की अध्यक्ष एवं संगोष्ठी संयोजक प्रो. रेनू सिंह ने अतिथियों का शाल, श्रीफल, पुष्प गुच्छ एवं स्मृति चिन्ह से स्वागत किया और अपने स्वागत वक्तव्य में राष्ट्रीय संगोष्ठी के विषय एवं विषय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए ‘साहित्य, समाज और संस्कृति’ की प्रवृत्ति एवं उसके प्रभावों पर बात करते हुए कुछ समकालीन फिल्मों के माध्यम से अपनी बात को और स्पष्ट किया और साहित्यिक रूपों में फाइलों की बदली हुई भूमिका पर भी प्रकाश डाला।

आभार प्रदर्शन हिंदी विभाग, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ.वीरेन्द्र प्रताप ने किया और सत्र का कुशल संचालन, हिंदी विभाग, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ.जितेन्द्र कुमार सिंह ने किया।

उद्घाटन सत्र के बाद 18 जुलाई 2023 को ही राष्ट्रीय संगोष्ठी का प्रथम तकनीकी सत्र शुरू हुआ। इस सत्र का मुख्य विषय था ‘साहित्य, समाज और संस्कृति का अंतर्संबंध’। इस सत्र में बतौर मुख्य अतिथि श्रीमती कुसुमलता सिंह, सम्पादक,’ककसाड़’ पत्रिका, दिल्ली मौजूद रहीं और सत्र की अध्यक्षता प्रो.मनीषा शर्मा, संकायाध्यक्ष,पत्रकारिता एवं जनसंचार संकाय, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय ने की। श्रीमती कुसुमलता सिंह ने ‘भारती साहित्य की हिंदी काव्य में अन्य कलाओं की आवाजाही’ विषय पर महत्वपूर्ण व्याख्यान दिया और हिंदी काव्य में कलाओं की आवाजाही पर विस्तार से प्रकाश डाला। प्रथम सत्र में डॉ.रत्नेश कुमार, डॉ.योगेश कुमार मिश्र और पूजा दाहिया ने शोधपत्र का वाचन किया। अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो.मनीषा शर्मा ने शोध पत्रों के सार संक्षेप और साहित्य, समय और संस्कृति के अंतर्संबंधों पर प्रकाश डालते हुए महत्वपूर्ण बिन्दुओं की चर्चा की। 

इस सत्र में अतिथियों का स्वागत संगोष्ठी सह संयोजक एवं हिंदी अधिकारी, राजभाषा अनुभाग, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक ने किया सत्र में हिंदी विभाग, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की सहायक प्राध्यापक डॉ.पूनम पाण्डेय भी मौजूद रहीं। सत्र का संचालन हिंदी विभाग की शोधछात्रा पूजा यादव ने किया और प्रतिवेदन हिंदी विभाग के ही शोधछात्र देवानंद राजू यादव ने किया।

तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे सत्र का केंद्रीय विषय था ‘साहित्य और समाज :परिवेश एवं परिस्थितियां’। दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विभाग, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के अध्यक्ष प्रो. कृष्णा सिंह ने की। इस सत्र में डॉ. नीलमणि दुबे, संकायाध्यक्ष, भाषा एवं हिंदी विभाग, पंडित शंभूनाथ शुक्ल विश्वविद्यालय,शहडोल विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहीं। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. वीरेन्द्र प्रताप, सहायक प्राध्यापक हिंदी विभाग, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक रहे और डॉ. मीनू पाण्डेय, सहायक प्राध्यापक, क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, एनसीईआरटी, भोपाल वक्ता के रूप में उपस्थित रहीं।

डॉ. मीनू पाण्डेय ने ‘भाषा समाज, संस्कृति एवं साहित्य : अंतर्संबंध का अध्ययन’ विषय पर शोध पत्र का वाचन किया | भाषा का समाज एवं संस्कृति का कैसे विशेष सम्बन्ध होता है? कैसे एक दूसरे को प्रभावित करते हैं इस विषय पर विस्तार से अपना विचार रखा डॉ. वीरेन्द्र प्रताप ने अपने वक्तव्य में भारतीय साहित्य और संस्कृति के इतिहास के बारे में बात करते हुए वेद से लेकर विज्ञान यानी समकालीन साहित्यिक विमर्शों तक को अपने विषय में समाहित करते हुए, सदियों से चली आ रही भारतीय साहित्य की परंपरा में आये ठहराओं, बदलाओं और साहित्यिक प्रवृत्तियों को बदलते हुए समाज और संस्कृति के सन्दर्भ में देखा।

डॉ.नीलमणि दुबे ने निराला की प्रसिद्द कविता ‘राम की शक्ति पूजा’ की पंक्तियों को उधृत करते हुए समाज और संस्कृति के गहन अन्धकार से उजाले की ओर आने की चेतना पर व्यापक प्रकाश डाला। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. कृष्णा सिंह ने साहित्य के व्यापक परिप्रेक्ष पर बात करते हुए ग्रीक, रोमन, अंग्रेजी और संस्कृति साहित्य पर व्यापक प्रकाश डालते हुए साहित्यिक आलोचना के प्रतिमानों, संस्कृति की गतिशीलता के साथ साहित्य में कलाओं के योगदान पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि साहित्य के लिए जरुरी नहीं है कि वहां समाज मौजूद ही हो। इसके लिए उन्होंने ए.जी. गार्डिनर के प्रसिद्द निबंध ‘अ फैलो ट्रेवलर’ का उदाहरण दिया और बताया कि कैसे एक साहित्यकार मच्छर जैसे छोटे से छोटे जीव पर एक बेहतर साहित्य रच सकता है। फिक्सन और इतिहास के बीच के अंतर को स्पष्ट करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृति का मूल्यांकन करते हुए हमें समाज और संस्कृति की जड़ताओं और विसंगतियों को भूलना नहीं चाहिए नहीं तो भविष्य में अतीत की गलतियों को दुहराने की संभावनाएं बनी रहती हैं।

इस सत्र में चार प्रतिभागियों ने अपने शोधपत्रों का वाचन किया। अंग्रेजी विभाग, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर डॉ. दीपा मोनी बरुआ ने भाषाओं के विलुप्त होने से विलुप्त होने के कगार पर खड़ी संस्कृतियों के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण बातें कहीं। शिक्षा विभाग, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की शोधछात्रा प्रियंका सिंह ने अपने शोध पत्र के माध्यम से शिक्षण अधिगम पर बात करते हुए बच्चों में सांस्कृतिक चेतना के विस्तार को समझाया। उन्होंने तकनीक से पैदा होने वाले सांस्कृतिक संकट की ओर भी संकेत किया। महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा की दो शोध छात्राओं – प्रियंका जायसवाल और रेखा जोशी ने प्रेम की सामाजिकता और हिंदी उपन्यास तथा मृदुला गर्ग के नाटकों में अभिव्यक्त स्त्रियों की सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति पर प्रकाश डाला।

संगोष्ठी का तृतीय सत्र ऑनलाइन और ऑफ़ लाइन माध्यम से संचालित हुआ। इस सत्र में देश के विभिन्न हिस्सों से लगभग 30 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। विषय की दृष्टि से इस सत्र में विविध सन्दर्भों को समाहित किया गया। दस प्रतिभागियों ने भौतिक रूप से उपस्थित होकर शोध पत्र का वाचन किया और लगभग 20 प्रतिभागियों ने ऑनलाइन माध्यम से शोध पत्रों का वाचन कर इस संगोष्ठी को सफल बनाया। इस सत्र में देश के लगभग सात राज्यों से प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। साहित्य के विविध सन्दर्भों और अनेक भारतीय भाषाओं, आदिवासी भाषा के साहित्य और समाज तथा जनसंचार माध्यमों से साहित्य और समाज के संवर्धन के साथ कृषि संस्कृति पर चर्चा हुई। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. गोविन्द प्रसाद मिश्र, सह आचार्य, दर्शनशास्त्र विभाग, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय,अमरकंटक ने की। इस सत्र में हिंदी विभाग की सहायक आचार्य डॉ.पूनम पाण्डेय मौजूद रही। डॉ. प्रवीण कुमार, सहायक आचार्य, हिंदी विभाग, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक ने ऑनलाइन सत्र संचालन में विशेष तकनीकी सहायता की।

चतुर्थ सत्र में ‘साहित्य, भाषा और समाज :परस्पर आश्रितता’ विषय पर गंभीर विचार विमर्श करने के लिए प्रो.दिलीप सिंह, पूर्व निदेशक,लुप्तप्राय भाषा केंद्र, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक, प्रो. मिथिला प्रसाद त्रिपाठी, प्रो.के एल वर्मा, कुलपति छत्रपति शिवाजी विश्वविद्यालय, नवी मुंबई और प्रो. विष्णु नारायण मिश्र, सम्मानीय अतिथि डॉ. धर्मेन्द्र पाण्डेय व श्याम जी (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान) की महत्वपूर्ण उपस्थिति रही। जहाँ प्रो के.एल वर्मा जी ने आजकल साहित्य के कम पढ़े जाने यानी अरुचि पर चिंता जाहिर की, वहीँ प्रो दिलीप सिंह ने हिंदी, संस्कृत और अन्य भाषाओं तथा बोलियों के साथ उनके तुलनात्मक अध्ययन पर जोर दिया ताकि लुप्त होने से भाषाओं को बचाया जा सके और भाषाई अस्मिता की रक्षा की जा सके।

तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में हिंदी विभाग के विभागीय सदस्यों, प्राध्यापकगण, विश्वविद्यालय अधिकारियों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों व कर्मचारियों सहित,  यथा  – डॉ.जितेन्द्र कुमार सिंह, डॉ.प्रवीण कुमार, डॉ. वीरेन्द्र प्रताप, डॉ.पूनम पाण्डेय एवं विभाग के शोधार्थियों- श्रीमती अंकिता, स्नेहल सिंह, प्रीतिलता सिंह, पूजा यादव, चित्रार्धनी पटेल, देवानंद राजू यादव, दिव्या रोहिणी, गेंदा यादव, शांति सुमन, शिवपाल, पूरण आदि का विशेष योगदान रहा। राजभाषा अनुभाग की ओर से श्री युगांक सिंह, श्री भास्कर बर्मे, श्री लवकुश, विकास मोगरे एवं ब्रजनंद ने इस आयोजन को सफल बनाने में विशेष योगदान दिया। इस संगोष्ठी की सफलता में एन सी सी के कैडेट्स का भी विशेष योगदान है।

Bhupendra Patel
Author: Bhupendra Patel

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