अपर नर्मदा परियोजना निरस्त करने पुष्पराजगढ़ क्षेत्र की हजारों जनता सड़कों पर उतर कर सौंपे ज्ञापन
अनूपपुर / जिले के पुष्पराजगढ़ विधानसभा क्षेत्र के विधायक फुंदेलाल सिंह मार्को के नेतृत्व में अपर नर्मदा किसान संघर्ष मोर्चा, वि.ख. पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा।ज्ञापन की प्रति राष्ट्रपति,राज्यपाल मध्यप्रदेश शासन,प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश शासन भोपाल को भेजी गई।
ज्ञापन में लेख किया गया कि दिनांक 24 जुलाई 2024 को अपर नर्मदा बांध किसान संघर्ष मोर्चा के तात्वाधान में अपर नर्मदा बांध परियोजना से प्रभावित ग्राम के ग्रामसभा सदस्य महिला पुरूष एंव जनप्रतिनिधिगण व विधानसभा पुष्पराजगढ़ विधायक की उपस्थिति में बांध के विरोध में सभा रैली निकालकर विरोध प्रदर्शन किया गया।जिसमें हजारों ग्रामवासी सम्मलित हुए व निम्नलिखित बिंदुओं के संवैधानिक न्यायपूर्ण कार्यवाही हेतु 14 सूत्रीय ज्ञापन पत्र जिला कलेक्टर अनूपपुर मध्यप्रदेश के माध्यम से प्रेषित किया गया है।भारत के संविधान के पालनार्थ न्यायपूर्ण कार्यवाही हेतु जिसमें प्रमुख रूप से यह कि नर्मदा नदी देशवासियों की धार्मिक आस्था की नदी है,धार्मिक ग्रन्थों में कहा गया है कि गंगा जी में नहाने से और नर्मदा जी के मात्र दर्शन करने से पुण्य फल प्राप्त होता है,लेकिन मध्यप्रदेश नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के द्वारा देश में सबसे ज्यादा बांध नर्मदा में ही बनाया जा रहा है,जिसमें अपर नर्मदा परियोजना नर्मदा नदी उदगम से 40 किलोमीटर नीचे बनाया जा रहा है, बांध के निर्माण से वैज्ञानिक मत अनुसार उद्गम के समीप बनाये जाने से उद्गम स्थल के जल स्त्रोत बंद हो जाते हैं,परियोजना निर्माण के पूर्व जल स्त्रोत का विस्त्रत अध्यन कराया जाये।साथ ही 1997 में आए भूकंप का मुख्य केंद्र बिंदु बरगी बांध के नीचे कोसमघाट था उसके बाद अनेक भूकंप आये जिनका केंद्र बिंदु नर्मदा नदी के समेप ही रहा है।यह कि वर्तमान में नर्मदा घाटी विकास प्रधिकरण एव जल संसाधन विभाग के द्वारा अपर नर्मदा बांध परियोजना शोभापुर परियोजना डिण्डौरी जिला व पुष्पराजगढ अनूपपुर जिला में बांध वर्ष 2024-25 में निर्माण के लिये स्वीक़त है।परियोजना से लगभग 6 हजार सात सौ से ज्यादा परिवार पुष्पराजगढ़ से विस्थापित होंगे।इन विस्थापितों में 99 प्रतिशत आदिवासी होंगे।एक ग्रामिण परिवार में अधिकतम 10 व्यक्ति होते हैं।संख्या की दृष्टी से 67 हजार से ज्यादा आदिवसियों का विस्थापन हो जायेगा जिससे आदिवासी समुदाय में गम्भीर संकट उत्पन्न होगा।यह कि आदिवासी समाज की संस्क्रतिक विरासत,ऐतिहासिक विरासत, रिश्तेनाते,रुढीप्रथायें,आदिवासी परम्परायें, जिनके संरक्षण के लिये अरबों रूपये खर्च किये जाते हैं। परियोजना निर्माण से सब नष्ट हो जायेगा,आदिवासी समुदाय प्रक्रति पर आधारित है,जल,जंगल,जमीन पर आधारित है,जंगल है तो आदिवासी हैं, कृषि पर आधारित है,जैव-विविधता पर आधारित है।इतने बड़े पैमाने पर विस्थापन करना मतलब आदिवासियों का सामूहित तौर पर जीवन समाप्त करना है।वर्तमान में जो परियोजना निर्माण एव विकास होना है इसमें 67 हजार से ज्यादा परिवार विस्थापित होंगे क्या आदिवासी समाज ही देश के विकास में शहीद होगा।यह देश हित में चिंतन करने का विषय है।भारतीय संविधान में उल्लेखित 5वीं अनुसूची के तहत अनुच्छेद 244 (1) और (2) में आदिवासियों को पूर्ण स्वशासन व नियंत्रण की शक्ती दी गयी है। नर्मदा नदी उद्गम स्थल अमरकंटक अनूपपुर जिले से डिण्डौरी में प्रवेश करती है।अमरकंटक विकासखण्ड पुष्पराजगढ एवं जिला डिण्डौरी पांचवी अनुसूची क्षेत्र है। अनूसूचित क्षेत्र राज्यपाल के आधिनस्थ है,पांचवी अनुसूची के साथ ही क्षेत्र में वन अधिकार मान्यता कानून व पेसा नियम लागू है।इन सम्वैधानिक प्रक्रियाओं के तहत कोई भी परियोजना निर्माण से पहले यहाँ की ग्राम सभाओं की सहमति अनिवार्य है। जो कि नर्मदा घाटी विकास प्रधिकरण द्वारा नही ली गयी है।
अनुच्छेद 141 में उच्चतम न्यायलय द्वारा पारित आदेशों को किसी भी विधान मण्डल या व्यव्हार न्यायालय को अनुशरण करने की बात कही गयी है। “लोकसभा न विधानसभा सबसे ऊंची ग्रामसभा” वेदंता मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 18/04/2013 को सुनाया था।परियोजना निर्माण में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण एंव जिला कलेक्टर (राजस्व) अनूपपुर के द्वारा ग्रामसभा की सहमति नहीं ली गई,यह अनुच्छेद 18 (राजस्व) अनूपपुर के जो कि संविधान की अवहेलना है,संविधान की अवहेलना पर विभाग प्रमुखों पर कार्यवाही की जावे।उच्चतम न्यायालय के समता जजमेंट (फैसला) 1997 के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में केन्द्र और राज्य सरकार का एक इंच भी जमीन नहीं है।उक्त विषयान्तर्गत माननीय न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू के द्वारा 05/01/2011 को एक रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायलय को सौंपी गयी है।जिसमें यह कहा गया है कि भारत देश के 8 फीसदी आदिवासी ही मालिक हैं।उपरोक्त संवैधानिक प्रावधान पूर्णतः आदिवासियों के हक में हैं और ये ही उनके संघर्ष के असली हथियार भी।सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न आदेशों के बाद भी मध्यप्रदेश शासन,जिला प्रशासन संविधान एंव सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के विपरीत कार्य कर लाखों आदिवासियों का विस्थापन राज्य में कर रही है। संविधान की अवहेलना एंव सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करने पर विभाग प्रमुखों पर कार्यवाही की जावे।अनुसूचित जनजातियों की आजीविका का मूल स्रोत कृषि के साथ वन उपज भी है और यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि न केवल जैविक विविधता का संरक्षण किया जाए, बल्कि इससे होने वाले लाभों को समान रूप से साझा किया जाए। अपर नर्मदा परियोजना निर्माण से महत्वपूर्ण जैव विविधता नष्ट हो जायेगी।अपर नर्मदा परियोजना से प्रभावित क्षेत्र की कृषि भूमि अधिक उपजाऊ है,इस क्षेत्र से क्षेत्र की शासकीय कृषि मण्डी को सबसे अधिक राजस्व प्राप्त होता है पूरे क्षेत्र में दो फसल,तीन फसल एंव सब्जी का उत्पादन होता है,परियोजना निर्माण से समस्त उपजाऊ भूमि डूब जायेगी।वन अधिकार अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत ग्राम सभा को अन्य बातों के साथ-साथ सामुदायिक वन संसाधनों तक पहुंच को विनियमित करने तथा जंगली जानवरों, वन और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली किसी भी गतिविधि को रोकने के लिए ग्राम सभा में लिए गए निर्णय का अनुपालन सुनिश्चित करने का अधिकार दिया गया है। वन अधिकार अधिनियम का अपर नर्मदा परियोजना निर्माण में प्रकिया पालन किया जावे।भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 में अधिनियमित किया है।उक्त अधिनियम का उद्देश्य संविधान के तहत स्थापित स्थानीय स्वशासन संस्थाओं और ग्राम सभाओं के परामर्श से भूमि अधिग्रहण के लिए मानवीय,सहभागी, सूचित और पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित कर्जा है।भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 में विस्थापन के विरुद्ध सुरक्षा के रूप में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम, 2013 की धारा 41 एवं 42 के अंतर्गत विशेष प्रावधान किए गए हैं जो उनके हितों की रक्षा करते हैं।धारा 41 (1) के अनुसार,जहां तक संभव हो, अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि का कोई अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। धारा 41 (2) के अनुसार, जहां ऐसा अधिग्रहण
होता भी है, तो उसे केवल अंतिम उपाय के रूप में ही किया जाएगा। धारा 41(3) के अनुसार,अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भूमि के अधिग्रहण या परिवर्तन के मामले में, ऐसे क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण के सभी मामलों में,जिसमें अत्यावश्यकता के मामले में अधिग्रहण भी शामिल है, इस अधिनियम या किसी अन्य केन्द्रीय अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त राज्य अधिनियम के अंतर्गत अधिसूचना जारी करने से पूर्व, संबंधित ग्राम सभा या पंचायतों या संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में उपयुक्त स्तर पर स्वायत्त जिला परिषदों की पूर्व सहमति प्राप्त की जाएगी। आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम, 2013 में पुनर्वास और पुनर्स्थापन की प्रक्रिया और तरीके भी निर्धारित किए गए हैं यह कि उपरोक्त आरएफसीटीएलएआरआर अधिनियम 2013 की धारा 41 कण्डिका (1) (2) (3) के तहत जिला प्रशासन राजस्व विभाग व नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने कार्य नहीं किया है अधिनियम व संविधान के विरूद्ध कार्य किया है, जो भी ग्राम सहमति पत्र नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा दस्तावेज में संलग्न किया गया है वे फर्जी सहमति है।सहमति पत्र में ग्रामसभा प्रस्ताव संलग्न ही नहीं है।इसलिए परियोजना प्रस्ताव निरस्त करने की प्रक्रिया की जावे। इस तरह विभिन्न प्रकार के मुद्दों का दलील देकर के ज्ञापन सोपा गया है जिससे उक्त परियोजना उक्त स्थान पर निर्मित ना हो सके।
विधायक पुष्पराजगढ़ फुंदेलाल सिंह मार्को एवं अपर नर्मदा किसान संघर्ष मोर्चा, वि.ख. पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर ने ज्ञापन के माध्यम से निवेदन किया है कि अपर नर्मदा परियोजना पर तुरंत रोक लगाई जावे, आदिवासी समाज बांध का विरोधी नहीं है,छोटे बांध बनाऐ जावें,लिफ्ट ऐरिकेशन सिस्टम से सिंचाई सुविधाओं का निर्माण हो प्रत्येक ग्राम स्तर पर जल संरक्षण के तहत प्रोजेक्ट निर्माण कार्य तैयार किए जावें, सामाजिक नुकसान कम हो,आर्थिक नुकसान कम हो संस्कृति रीति रिवाज पंरपराऐं विद्यमान रहें,धार्मिक आस्था कायम रहे तथा भारत के संविधान का उल्लंघन ना हो सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन हो।इस अवसर पर ऐतिहासिक रैली शहर की सड़कों पर देखने को मिली जिसमें भारी संख्या में प्रभावित क्षेत्र के लोग,ग्रामीण जन,पंच,सरपंच,जिला पंचायत सदस्य एवं महिलाएं आदि उपस्थित रही।