चैत्र नवरात्रि पावन पर्व प्रथम दिन भटिया मंदिर में उमड़ा भक्तों का जन सैलाब आकर्षण बना गुम्मबद एवम साज सज्जा
रसमोहनी
शक्ति पीठ भटिया जिला से लगभग 50किलोमीटर की दूरी पर माता रानी की मंदिर मां सिंहवाहिनी देवी की विशाल प्रतिमा भटिया में विराजमान हैं । तहसीलदार महोदया द्वारा मेला सुचारू ढंग से संचालन के लिए सभी प्रशास निक अमला की ड्यूटी लगाकर खुद उपस्थित रहती है। मेला एवम मंदिर भंडारा की व्यवस्था में तहसीलदार सुश्री अर्चना मिश्रा द्वारा खुद निगरानी किया जा रहा है। आज भंडारे की शुरुआत तहसीलदार अर्चना मिश्रा द्वारा माता रानी जी को भोग लगाकर एवम इसके बाद कन्या भोज कराकर प्रारम्भ किया गया। इसके बाद मंदिर एवम मेला व्यवस्था का जायजा लिया गया। सभी व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए निर्देश सभी प्रशासनिक अमला को दिया गया और क्षेत्र वासियों से सहयोग करने की अपील भी की शक्तिपीठ भटिया मंदिर जाने के लिए शहडोल ,बुढ़ार ,अनूपपुर ,कोतमा ,व्योहारी रेलवे स्टेशन में उतरकर सड़क से बस, टैक्सी के माध्यम से माता रानी के दर्शन हेतु पहुंचने का प्रमुख साधन है ।माता रानी की ख्याति भारत वर्ष में चारों तरफ फैली हुई है। मां के दर्शन हेतु शहडोल एवम अनूपपुर, उमरिया, रीवा, सीधी, सिंगरौली आदि जिले के कोने कोने से एवम मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, एवम अन्य प्रांतों से भी साल भर प्रतिदिन भक्तों की भीड़ बनी रहती है लेकिन नवरात्रि में उक्त सभी जगहों से भक्तों की काफी भीड़ हो जाती है। आज नवरात्री के प्रथम दिन सुबह से ही भारत के कोने कोने से हजारों भक्तों ने माता रानी को मत्था टेक कर अपना अपना अर्जी मिन्नत किए। माता रानी से जो भी भक्त सच्चे मन से जो भी मांगते हैं मां उनकी हर मुराद पूरी करती हैं।हर वर्ष की भांति इस वर्ष मन्दिर की साज सज्जा बड़े ही आकर्षण ढंग से सजाया गया है। भक्तों को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो इस बात का विशेस ध्यान रखा गया है। मां के भक्तों द्वारा जगह जगह भंडारे का अयोजन भी किया जा रहा है।भटिया देवी मंदिर का बहुत पुराना इतिहास है।पूर्वजों के प्राप्त जानकारी के अनुसार एवम ट्रस्ट अध्यक्ष रामदीन सिंह जानकारी देते हुए बताया गया की यह मंदिर कलचुरी काल का है।पहले यह मंदिर घासफूस से बना था । सन 1970 में श्री शंकराचार्य महाराज जी द्वारा आम जन सहयोग से विशाल श्री लक्ष्मी महायज्ञ का आयोजन किया गया तभी से मंदिर का विकास कार्य शुरू हुआ।इसके बाद सभी के जन सहयोग से एक छोटा सा मंदिर का निर्माण कराया गया था ।इसके बाद अब विशाल मंदिर का निर्माण ट्रस्ट एवं सेवा समिति दोनों मिलकर सभी के जनसहयोग से किया गया है मंदिर के उत्तर दिशा में देवी तालाब है जो लगभग 10 एकड़ का है। आज भी तालाब में शंख घड़ियाल नगाड़े की ध्वनि कभी कभी सुनाई देती है पूर्बजों का ऐसा मानना है कि तालाब के बीचो बीच सोने की मंदिर है , सुबह 3 से 4 बजे के बीच में यह ध्वनि सुनाई देती है।भटिया एवं भटिया से लगा गावं कोल्हुआ एवं आस पास गांव के बहुत सारे लोग बताते हैं आज भी कभी कभी ध्वनि सुनाई देती है ।इस मंदिर के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। माता सिंहवाहिनी जी की विशाल प्रतिमा है सभी मूर्तिया खुदाई से प्राप्त हुई है।। बुद्धि की देवी है मां सिंहवाहनी*****सनातन परंपरा में मां सिंहवाहनी से विद्या बुद्धि और कला की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी पूजा जाता है। परिक्षा, प्रतियोगिता की तैयारी में जुटे छात्र मां सिंहवाहनी का विशेस आशिर्वाद लेने के लिए बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं। मां सिंहवाहनी की सच्चे मन से पूजा करने वाले साधक को सुख समृद्धि का आशिर्वाद प्राप्त होता है, साथ ही माता की कृपा से वह हमेशा तमाम प्रकार के भय रोग आदि तमाम प्रकार की व्याधि से बचा रहता है यह सब जानकारी धार्मिक आस्था और धार्मिक मान्यताओंपर आधारित है। सूर्य नारायण भगवान की प्रतिमा ,अष्ठभुज गणेश की मूर्ति ,माँ के सातों रूपों की प्रतिमा खुदाई से प्राप्त हुई है जो भटिया मंदिर में विराजमान हैं। पूर्बजों के अनुसार श्री राम अपने वनवास काल में कुछ समय यहां बिताए थे ग्राम कोल्हुवा में सीता माता के द्वारा बनाया हुआ चौक आज भी विद्यमान है जिसे सीता चौक के नाम से जाना जाता है इसकी भी विशेष महिमा है। पांडव अपने वनवास काल में बहुत सारा समय अपना यहीं व्यतीत किये थे। भटिया से लगा एक छोटा सा गावं भीखमपुर के नाम से जाना जाता है जहां पूर्व में भीष्म पुर था ,भीष्म वहीं निवास करते थे भीष्म के नाम से ही इस गावं का नाम पड़ा।दोनों नवरात्रि में भक्तों की काफी भीड़ रहती है प्रशासन एवं ट्रस्ट एवं मां के भक्तो के द्वारा यहां की सम्पूर्ण व्यवस्था की जाती है।भटिया मंदिर के नाम से 22एकड़ 26 डिसमिल जमीन है। आज से प्रारंभ होगा । मेला एवम मन्दिर का सजावट आकर्षण का केन्द्र बिन्दु बना है। मेला की सफल बनाने में प्रशासन एवम समिति और मां के भक्तो द्वारा अपनी सेवा दे रहे
